हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है, जिससे राज्य के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनर्स को 1 तारीख को सैलरी और पेंशन का भुगतान नहीं हो पाया।
प्रदेश की वर्तमान वित्तीय स्थिति अत्यधिक खराब हो चुकी है, और इस समय राज्य पर लगभग 94 हजार करोड़ रुपये का भारी कर्ज है। इस आर्थिक बोझ ने राज्य सरकार की वित्तीय क्षमता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए सरकार पर लगभग ₹10 हजार करोड़ रुपये की देनदारियां बकाया हैं, जिन्हें समय पर न चुका पाने के कारण सरकार को तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
हिमाचल प्रदेश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का एक बड़ा कारण 2022 के चुनाव में कांग्रेस द्वारा किए गए बड़े वादे हैं। सत्ता में आने के बाद इन वादों पर अत्यधिक खर्च किया गया, जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर और दबाव पड़ा। राज्य के बजट का 40 प्रतिशत हिस्सा सैलरी और पेंशन देने में खर्च हो जाता है, जबकि लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा कर्ज और ब्याज चुकाने में चला जाता है।
प्रदेश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को देखते हुए, सरकार ने हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने घोषणा की थी कि मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, और बोर्ड निगमों के चेयरमैन दो महीने तक वेतन-भत्ते नहीं लेंगे। इसके साथ ही, मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों से भी अनुरोध किया है कि वे दो महीने के लिए अपने वेतन-भत्ते छोड़ दें।
सुक्खू का कहना है कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए यह कदम आवश्यक है, और वे खुद इस संकट के समय में अपने और अपने मंत्रियों के वेतन-भत्ते को छोड़ रहे हैं। उन्होंने विधायकों से भी आग्रह किया कि वे दो महीने का वेतन एडजस्ट करने का प्रयास करें।