मनोरंजन सदन द्वितीय में कथा के पांचवें दिन श्री रामचंद्राचार्य जी ने बताया कि हमने देव दुर्लभ शरीर पाया है यदि हमने इस शरीर से प्रभु का भजन नहीं किया तो हमारे लोक और परलोक नष्ट हो जाएगा। हमें अमावस्या में पूर्णिमा के दिन यज्ञ जरूर करना चाहिए क्योंकि पूर्णिमा के दिन यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं और अमावस्या के यज्ञ से हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। पितरों के प्रसन्न होने से ही घर में संतान प्राप्ति होती है। यदि जीवन में सुख आए तो उसे बांटना चाहिए यदि दुख आए तो उसे स्वयं सहने की कोशिश करें।

ब्राह्मण और संतों के आशीर्वाद से बड़े से बड़े ग्रह टल जाते हैं। इसलिए हमें सदैव इनका सम्मान करना चाहिए। यदि हम प्रभु से सच्चा प्रेम करते हैं तो हम जो कुछ भी ग्रहण करें तो हमारे जीवन में सभी सुख प्राप्त हो जाएंगे। महात्मा तीन काम नहीं करते यह श्राप नहीं देते जल्दी से आशीर्वाद भी नहीं देते क्योंकि ऐसा किया तो किसी का अनिष्ट भी हो सकता है तीसरा वह सदैव एकांत में रहते हैं। कथा मे सुबोध गोयल, निरंकार शर्मा, चंद्र प्रकाश शर्मा, कौशल गुप्ता, नरेंद्र केंतुरा, राजेंद्र भारद्वाज, सतेंद्र तिवारी, सतीश चंद्र गुप्ता, राजेंद्र बिज्लवाण, मुरलीधर बलोधी, राकेश शर्मा, पवन शर्मा, पवन यादव, अमित मोईन, नन्द किशोर श्रीवास्तव, गुरदेई देवी, सोभा देवी, सावित्री जोशी, रमा सक्सेना, देवकी पुंडीर आदि उपस्थित रहे।