विकासनगर। उत्तराखण्ड में बिजली के एक बार फिर दाम बढ़ाने की चर्चाओं के बीच विकासनगर में जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष और जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने भाजपा सरकार को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि भारी विद्युत लाइन नुकसान के चलते सूबे की सरकार बिजली के दामों में बढ़ोतरी कर उपभोक्ताओं पर कहर बरपा रही है, जिसके चलते लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। सरकार पर तीखा हमला करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार सीधे तौर पर जनता को लूट रही है।
आंकड़ों के जरिए रघुनाथ सिंह नेगी ने धामी सरकार को घेरा
पत्रकारों से बातचीत करते हुए रघुनाथ सिंह नेगी ने कई आंकड़ों को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020-21 में यूपीसीएल की ओर से लगभग 13287 मिलियन यूनिट्स बिजली खरीदी गई थी, जबकि 11432 मिलियन यूनिट्स बिजली बेची गई थी, जिसके चलते यूपीसीएल को 1855 मिलियन यूनिट्स का नुकसान हुआ। आंकड़ों के मुताबिक, जिसकी कीमत 1109 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसी तरह वर्ष 2021-22 में 14581 एमयू खरीदी गई और 12519 एमयू बेची गई, जिसके चलते 2063 एमयू का नुकसान हुआ। जिसके कारण औसतन 1176 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
सरकार बिजली नुकसान की ओर नहीं दे रही ध्यान- रघुनाथ
ऐसा ही कुछ हाल वर्ष 2022-23 में हुआ, तकरीबन 15757 एमयू खरीदी गई और 13491 बेची गई, जिससे 2266 एमयू का नुकसान हुआ। वर्ष 2023- 24 में भी लाइन नुकसान में कोई कमी नहीं आई । हैरानी की बात यह है कि सरकार या यूपीसीएल चाहते तो इस नुकसान को काफी कम कर सकते थे, लेकिन लॉस कम होने से इनके मंसूबों पर पानी फिर जाएगा। धामी सरकार पर तीखा हमला करते हुए रघुनाथ नेगी ने कहा कि यह हाल तब है, जब सरकार को बहुत कम दामों में विद्युत रॉयल्टी और अपनी जल विद्युत परियोजनाएं हैं, अगर यह सब न होता तो सरकार 10 रुपये यूनिट बिजली बेचती। रघुनाथ नेगी ने कहा कि लगभग 1400-1500 करोड़ रूपये लाइन लॉस में चला जाना बहुत ही गंभीर मामला है।
लोगों पर बिजली नुकसान का डाला जा रहा बोझ- रघुनाथ
धामी सरकार पर कटाक्ष करते हुए रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि सरकार और निगम को कोई फर्क नहीं पड़ता है। आखिर बड़ी मात्रा में नुकसान को कोई भी कैसे स्वीकार कर सकता है। मुझे समझ नहीं आता कि सरकार को आखिर दाम बढ़ाने की इतनी जल्दी क्या है। सरकार से तीखे सवाल पूछते हुए रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि क्या सरकार थोड़ा बहुत रियायत कर इसकी भरपाई नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि अगर सरकार में थोड़ी भी शर्म बची हो तो वह तुरंत इस नुकसान की भरपाई की दिशा में काम करती, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। बल्कि लोगों पर इसका बोझ डाला जा रहा है।