सिर्फ अतीत की याद बनकर रह गए गुत्तू (ओखली)

चकराता से मुकेश जोशी की रिपोर्ट

जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के हर घर के आँगन कभी पत्थर की बनी ओखली (गुत्तू) हुआ करतीं थी। इसमें धान,झंगोरा, मंडवा, कावंणी, हल्दी,नमक-मिर्च आदि की कुटाई होती थी, लेकिन बदलते दौर और आधुनिकरण के चलते घरों के आँगन से ओखली भी गायब हो गई। ओखली की जगह अब चक्की और मिक्सर ग्राइंडर मशीन ने ले ली। पुराने घरों के आंगन में जहां ओखली है भी उसका उपयोग भी बंद हो गया है। ओखली अब सिर्फ अतीत की याद बनकर रह गई है।

रंगकर्मी डॉ. नंदलाल भारती, लोक पंचायत के वरिष्ठ सदस्य श्रीचंद शर्मा, पूर्व प्रधान अतर सिंह तोमर बतातें है कि पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव था। एक समय था जब ग्रामीणों की आजीविका का साधन कृषि और पशुपालन होता था। ग्रामीण कोई भी वस्तु मोल नहीं लाते थे, सभी अनाजों की पैदावर स्वयं करतें थे। धान, झंगोरा, कावणी,मंडवा,आदि की कुटाई के लिए ग्रामीण आंगन में लकड़ी और पत्थर की ओखली बनाते थे। जमाना बदल गया है और ओखली की जगह अब घरों में बिजली से चलने वाले उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

प्रतिदिन सुबह चार बजें उठकर ओखली में धान की कुटाई करनी पड़ती थी हमारे समय में कोंदो,जंगोरा,कावणी,चैणी,चौलाई,गेहूँ,जौ,धान,मक्की आदि 20 अनाजों की खेती हुआ करतीं थी। कभी मोल का अनाज नहीं खरीदा जाता था। जब तक नई फसल नहीं आ जाती तब तक पुराना अनाज बचा कर रखा जाता था। समय इतना बदल गया कि खेत खलियान सब बंजर हों गए है। मेहरावना निवासी 83 वर्षीय नारायणी देवी।

सभी अनाजों की पहले खलियानों में बैलों (पशुओं )से मंड़ाई की जाती थी, उसके बाद ओखली में कुटाई की जाती थी। अब समय बदल गया और सभी खेत-खलियान-ओखली बिरान पड़े हुए है। बिरमोऊ निवासी 85 वर्षीय सावित्री देवी।