2001 का तूफ़ान जब रघुनाथ सिंह नेगी ने तहसील की ईंट से ईंट बजाने निकाला था न्याय का लावा!

2001 का तूफ़ान — जब रघुनाथ सिंह नेगी ने तहसील की ईंट से ईंट बजाने निकाला था न्याय का लावा!

ना सत्ता का सहारा, ना बिरादरी का झंडा — सिर्फ़ सच्चाई, संघर्ष और साथियों की सांसों से गूंज उठा था पूरा विकासनगर।

विकासनगर (उत्तराखंड बोला रहा है)।
वर्ष 2001… वो साल जब भ्रष्टाचार, अन्याय और तानाशाही के खिलाफ एक आदमी ने पूरी व्यवस्था को ललकार दिया था।
वो शख्स था — जनसंघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी

उस दिन विकासनगर की सड़कों पर जो नज़ारा देखने को मिला, वो इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है — पांच से सात हजार कार्यकर्ताओं का सैलाब तहसील की ओर बढ़ रहा था, और उनकी आवाज़ थी —
“जनता को न्याय दो, भ्रष्टाचार को समाप्त करो!”

लेकिन इस भीड़ की सबसे बड़ी ताकत ये थी कि ये भीड़ किराए की नहीं थी
ये वो लोग थे जो अपने हक़ और हौसले से जुड़े हुए योद्धा थे।
न कोई पार्टी का झंडा, न कोई बिरादरी का सहारा…
सिर्फ़ जनसंघर्ष की लौ और रघुनाथ सिंह नेगी का नेतृत्व।

💪 ऐतिहासिक पल:

जब रैली अपने चरम पर थी, तब कार्यकर्ताओं ने अपने नेता को तीन किलोमीटर तक कंधों पर बैठाकर चलाया!
उस वक़्त न किसी ने थकान महसूस की, न भूख-प्यास की परवाह।
क्योंकि वो दिन सिर्फ़ विरोध का नहीं, बल्कि जनता के आत्मसम्मान के पुनर्जागरण का था।

सच्चे कार्यकर्ताओं की पहचान:

आज जब बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियां 150-200 लोगों की भीड़ के लिए भाड़े पर लोग बुलाती हैं,
तब वो 2001 की रैली याद आती है —
जहां न खाना था, न पानी,
फिर भी हजारों साथी अपने नेता के पीछे ऐसे डटे थे,
जैसे सच्चाई के लिए निकली सेना।

जनसंघर्ष मोर्चा की ताकत:

आज भी वो जुनून, वो प्यार बरकरार है।
रघुनाथ सिंह नेगी सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि जनता के हक़ की आवाज़ हैं —
जिसने दिखाया कि अगर इरादा सच्चा हो, तो
एक इंसान भी हज़ारों दिलों में क्रांति जगा सकता है

“रैली नहीं, क्रांति थी वो — जिसने जनता को सिखाया कि हक़ मांगो नहीं, छिने   जाते   हैं  छीनो!”