जब अन्याय बढे तो जन संघर्ष मोर्चा बनता है जवाब—
🔥 “क्यों वर्ष 2006 में तहसील गेट तोड़, एसडीएम को सबक सिखाने लाव-लश्कर के साथ धावा बोलने निकल पड़े थे जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी!” 🔥
#आक्रोश देख क्यों भाग खड़े हुए थे एसडीएम !
#‘गरीब श्रमिकों का उत्पीड़न कैसे सह लें?’ – यही था नेगी का जवाब!
विकासनगर (उत्तराखंड बोल रहा है)।
वर्ष 2006… वो साल जब प्रशासनिक तानाशाही और श्रमिकों के शोषण के खिलाफ जन संघर्ष मोर्चा ने ऐसा आंदोलन खड़ा किया, जिसने पूरे देहरादून जनपद को हिला कर रख दिया था।
श्रमिक अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, लेकिन पुलिस-प्रशासन ने लाठीचार्ज कर न केवल उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की, बल्कि कई श्रमिक नेताओं पर झूठे मुकदमे भी दर्ज कर दिए।

जब यह बात जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी तक पहुँची, तो उन्होंने तुर्की अंदाज में कहा —
“गरीब श्रमिकों का उत्पीड़न हमसे नहीं सहा जाएगा!”
अगले ही दिन नेगी के नेतृत्व में हजारों की भीड़, झंडे-बैनर और नारेबाजी के बीच तहसील गेट की ओर कूच कर गई।
गर्जन, हुंकार और नारे — “अन्याय बंद करो, मजदूर को न्याय दो!” — से पूरा क्षेत्र गूंज उठा।
श्रमिकों के आक्रोश को देख प्रशासन के पांव तले जमीन खिसक गई।
सुरक्षा के दृष्टिगत क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था।
सीओ, थाना अध्यक्षों और कई दरोगाओं की घेराबंदी में किसी तरह पहुंचे एसडीएम को जनता के तीखे सवालों और आक्रोश का सामना करना पड़ा।
स्थिति बिगड़ती देख एसडीएम पीछे हट गए, और तभी से यह घटना जन संघर्ष की प्रतीक कथा बन गई।
उस समय तहसील परिसर में मौजूद भाजपा कार्यकर्ता, जो अपनी किसी मांग को लेकर धरना दे रहे थे, आक्रोश का रूप देख वहाँ से खिसक लिए।
उस दिन श्रमिकों ने वर्षों बाद चैन की साँस ली — क्योंकि उनकी आवाज ने सत्ता की दीवारों को हिला दिया था।
✊ जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी का वो कदम आज भी जनता की जुबान पर मिसाल बनकर गूंजता है ,
जब अन्याय बढे तो जन संघर्ष बनता है जवाब—
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