जब सच्चाई के आगे झुक गया पूरा तंत्र — रघुनाथ सिंह नेगी को मिली ईमानदारी की क्लीन चिट,
साबित हुए उत्तराखंड की राजनीति के मिसाल”
देहरादून.विकासनगर।
वर्ष 2014 — उत्तराखंड की राजनीति का वह दौर जिसने “जनसंघर्ष” और “ईमानदारी” की नई परिभाषा लिखी। जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने उस समय सत्ता की आंखों में आंख डालकर वह सवाल उठाए, जिन पर आमतौर पर सन्नाटा पसरा रहता है।

खनन घोटाले, बल्लीवाला फ्लाईओवर प्रकरण, राजभवन की कार्यप्रणाली, तत्कालीन राज्यपाल अज़ीज़ कुरैशी की भूमिका, हाईकोर्ट में फर्जी नियुक्तियों और महाधिवक्ता की कार्यशैली — इन सब पर नेगी ने खुलकर आवाज़ उठाई। परिणामस्वरूप पूरा शासन–प्रशासनिक तंत्र, खुफिया एजेंसियां और इंटेलिजेंस विभाग उनके खिलाफ सक्रिय हो गए।
सरकार ने नेगी के विरुद्ध जांच बैठाई। स्वयं नेगी ने कहा, “यदि मैं गलत हूं तो सीबीआई जांच कराइए।” लेकिन यह मांग अस्वीकार कर दी गई और जांच की जिम्मेदारी दी गई डीआईजी गढ़वाल श्री अमित सिन्हा को।
लगभग डेढ़ महीने तक पूरी सरकारी मशीनरी ने नेगी के निजी और सार्वजनिक जीवन की बारीकी से जांच की — बैंक खातों से लेकर पारिवारिक खर्चों तक, बच्चों की फीस से लेकर भोजन-पानी के खर्च तक हर तथ्य मांगा गया।
परंतु परिणाम चौंकाने वाला था —
नेगी के खाते में मात्र ₹1102 की राशि पाई गई।
डीआईजी अमित सिन्हा ने सरकार के दबावों के बावजूद निष्पक्ष जांच रिपोर्ट सौंपी। सरकार इस नतीजे से असंतुष्ट हुई तो मुख्य न्यायाधीश ने नेगी से शपथपत्र (एफिडेविट) लेकर दोनों रिपोर्टों की तुलना कराई — परिणाम फिर वही रहा, एक रुपये का भी भ्रष्टाचार साबित नहीं हुआ।

अंततः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रघुनाथ सिंह नेगी को पूर्ण ईमानदारी की क्लीन चिट दी।
यह वह क्षण था जब सच्चाई के आगे पूरा तंत्र झुक गया — और नेगी एक प्रतीक बन गए “ईमानदार राजनीति” के।
आज भी यह प्रकरण उत्तराखंड की राजनीति में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज है — जब एक जननेता ने न सत्ता के आगे सिर झुकाया, न भय के आगे कदम रोके, बल्कि अपनी पारदर्शिता और सच्चाई से पूरे राज्य में ईमानदारी की मिसाल कायम की।
रघुनाथ सिंह नेगी — एक नाम जो बताता है कि सत्ता के गलियारों में भी सच्चाई आज भी जीवित है।
