धारचूला के स्यांकुरी गांव के निवासी डॉ. हरीश सिंह धामी को अमेरिका की पुर्ड्यू यूनिवर्सिटी से बतौर रिसर्च स्कॉलर आया बुलावा

धारचूला के स्यांकुरी गांव के युवा प्रतिभाशाली डॉ. हरीश सिंह धामी की प्रारंभिक शिक्षा विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के शिशु मंदिर एवं विद्या मंदिर से धारचूला एवं पिथौरागढ़ से हुई है। वे बताते हैं कि जहां एक ओर प्रारम्भिक शिक्षा के लिए वे बाल्यकाल में ही अपनी माताजी एवं भाई-बहनों को छोड़कर अपने पिताजी के साथ जो कि लोक निर्माण विभाग के अतिथि गृह में कार्यरत थे वहां चले गये और प्रतिदिन 03-04 किमी की खड़ी चढ़ाई के बाद स्कूल पहुँचते थे। भावुकतावश उनका कहना है कि एक तरफ दुनिया भर में विकास के स्वर गूंजायमान है आज भी हमारा वह क्षेत्र उसी हालत में है।

उत्तराखण्ड तकनीकि विश्वविद्यालय देहरादून से बी0टेक0 करने के तुरंत बाद बाद उन्होंने GLA यूनिवर्सिटी, मथुरा में बतौर लैक्चरर दो साल पढ़ाया। यह यात्रा यहीं नहीं रूकी यह मार्ग का प्रारम्भिक चरण था आगे उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरूवनंतपुरम से एम0टेक0 की पढ़ाई पूरी कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (इसरो) के लिक्विप प्रोप्यूल्सन सिस्टम सेन्टर में बतौर प्रोजेक्ट स्टॉफ कार्य किया। यह यात्रा यहीं नहीं रूकी मात्र एक वर्ष कार्य करने के पश्चात 2018 में देश के नम्बर-1 संस्थान भारतीय विज्ञान संस्थान में पी0एच0डी0 मैकनिकल इंजीनिरिंग में प्रवेश लिया।

इसी संस्थान से डॉ0 हरीश सिंह धामी ने 3D मेटल प्रिंटिंग में शोध कार्य कर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। इनके शोध का मुख्य विषय था उन्नत मटेरियल डेवेलपमेंट एवं निर्माण जोकि एरोस्पेस, ऑटोमोबिल एवं इंडस्ट्रियल के क्षेत्र मे उपयोगी होंगे।

पूरी तरह मेड इन इण्डिया 3D मेटल प्रिंटर के साथ डॉ0 हरीश सिंह धामी, जो इनकी टीम द्वारा तैयार किया गया और पेटेंट नामांकित कराया।

अल्पायु में हो गया था माता जी का निधन और पिता जी है लोक निर्माण विभाग में चौकीदार

मालूम हो कि चुनौतियों और हरीश का बचपन से सम्बन्ध रहा है पूर्व माध्यमिक की पढ़ाई के दौरान ही डॉ0 हरीश की माताजी स्तन कैंसर से पीड़ित हो अल्पायु में स्वर्ग सिधार गई। हरीश ने न केवल स्वयं का निर्माण किया बल्कि एक कुशल शिल्पी के रूप अपने भाई व बहन को भी प्रेरणा देकर उच्च शिक्षा की और अग्रसर कराया। पिताजी लोक निर्माण विभाग में चौकीदार के पद पर कार्य करते हैं और सभी बच्चों को उच्च शिक्षा दे सकने में सक्षमता नहीं थी तो हरीश ने स्वयं जिम्मेदारी उठाते हुए उनकों उच्च शिक्षा के लिए न केवल प्रेरित किया बल्कि स्वयं साध्य भूमिका का निर्वहन भी किया। हालांकि इस कार्य में पिताजी के साथ ही ताऊजी के पुत्र इनके बड़े भाई जो ITBP में सैन्य सेवा दे रहे हैं ने भी अद्वितीय भूमिका का निर्वहन किया। बकौल डॉ0 हरीश वे बताते हैं कि हम उस ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं जहाँ आतिथि तक भी सड़क, मोबाईल नेटवर्क जैसी मूलभूत सेवायें प्राप्त नहीं है हमारा कोई ऐसा मार्गदर्शक था ही नहीं जिसे कि हम प्रेरणास्रोत के रूप में लेते अथवा उसे अपना आदर्श मानते हमने अपने मार्ग को खुद प्रशस्त करना होता है और वही कार्य उन्होंने किया है।

वे बताते है कि परिवार का साथ हमेशा हर फैसले में था तो पर उनका जीवन बड़ा एकाकी बीता क्योंकि वे हमेशा अकेले ही अपने अध्ययन हेतु यहां-वहां निवासित रहे हैं। उनकी छोटी बहन ने भी पंतनगर विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है।

पुर्ड्यू यूनिवर्सिटी, इण्डियाना अमेरिका से प्राप्त हुआ 45 लाख सालाना का पैकेज

डॉ0 धामी बताते हैं कि उन्हें दिसम्बर, 2023 में अमेरिका की नामी स्पेस रिसर्च करने वाली पुर्ड्यू यूनिवर्सिटी जो इण्डियाना में स्थित है से बतौर रिसर्च स्कोलर बुलावा आया तो वे असंजस में थे कि वे देश से बाहर जायें कि नहीं वे इस समय बैंगलोर में ही अपनी पत्नी के साथ अध्यासित थे। वे देश एवं प्रदेश की सेवा करने के प्रबल इच्छुक तो हैं ही साथ ही उनका कहना है कि एक नया समाज, नया देश और सबसे अहम है नया कार्यक्षेत्र उन्हें उत्सुक भी कर रहा था। फैसला बेसक मुश्किल था किन्तु उन्होंने पुर्ड्यू यूनिवर्सिटी जाना स्वीकारा और वे कहते हैं कि जीवन के कुछ बेशकीमती वर्ष व्यतीत करते हुए अनुभवों के साथ जल्द अपने देश की सेवा में वापसी करूंगा।

युवाओं के नाम सन्देश

युवाओं के नाम सन्देश में डॉ0 धामी कहते हैं कि सबकी सामाजिक आर्थिक पृषठभूमि अलग-अलग होती हैं जिससे कुछ युवा हीन भावनाओं से ग्रसित हो जाते हैं और जीवन से उम्मीद छोड़ देते हैं। उनसे कहना चाहूंगा कि हम जहां है जैसे है वहीं से हमें फिर से शुरुआत करनी चाहिये। “सफलता तब मिलती है, जब आप सफल लोगों जैसे काम लगातार करते रहते हैं।”

मेहनत सफलता का ईंधन है, इसलिये मेहनत करना जरूरी है। यदि मेहनत नहीं करोगे तो सफलता की गाड़ी कभी भी प्लेटफॉर्म से आगे नहीं बढ़ पायेगी। इसलिये महत्वाकांक्षी बनिये, महत्वकांक्षा प्लेटफॉर्म और मंजिल के बीच का सफर तय करने में काम आती हैं । सफलता का मूल्य मेहनत है और काम में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने के बाद जीतने और हारने का मौका भी आपके हाथों में है।